सुभाष चंद्र बोस द्वारा दिये रंगून भाषण का काव्यानुवाद…
मूक होकर सह रहे हम पीर क्यूँ|
बह रहा केवल हमारा नीर क्यूँ||
माँ हमारी झेलती अपमान क्यूँ|
हम नहीं दे पा रहे सम्मान क्यूँ||
देशहित में मिल गढ़ो अब सब कहानी|
नाम कर दो देश के अपनी जवानी||
तुम युवा बन यज्ञ में समिधा जलो|
देह पर रज भूमि की अपने मलो||
काट सिर अर्पित करो अब मात को|
नष्ट कर दो शत्रु के सब घात को||
खून में भर लो नदी की तुम रवानी|
नाम कर दो देश के अपनी जवानी||
आज गढ़ना मिल हमें इतिहास है|
बात ये सच है नही परिहास है||
मांगती हमसे धरा बलिदान अब|
खून का करना पड़ेगा दान अब||
मुक्ति कब किसको मिली है बस जुबानी|
नाम कर दो देश के अपनी जवानी||
अब यहाँ आ सब करो हस्ताक्षर|
रक्त से अपने लिखो मुक्ताक्षर||
खून का सागर अभी तैयार हो|
डूब ब्रितानी जहां भव पार हो|
श्वास में भर वेग लो अपने तुफानी|
नाम कर दो देश के अपनी जवानी||
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रंगून के ‘जुबली हॉल’ में सुभाष चंद्र बोस द्वारा दिया गया भाषण सदैव के लिए इतिहास के पत्रों में अंकित हो गया जिसमें उन्होंने कहा था-
“स्वतंत्रता संग्राम के मेरे साथियों! स्वतंत्रता बलिदान चाहती है। आपने आज़ादी के लिए बहुत त्याग किया है, किन्तु अभी प्राणों की आहुति देना शेष है। आज़ादी को आज अपने शीश फूल की तरह चढ़ा देने वाले पुजारियों की आवश्यकता है। ऐसे नौजवानों की आवश्यकता है, जो अपना सिर काट कर स्वाधीनता की देवी को भेंट चढ़ा सकें। तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा। खून भी एक दो बूँद नहीं इतना कि खून का एक महासागर तैयार हो जाये और उसमें में ब्रिटिश साम्राज्य को डूबो दूँ।”
【जन्मदिन पर शत् शत् नमन】
-श्वेता राय