अनामिका गुप्ता
सृष्टि चक्र संभव न होता
अस्तित्व जो सूरज का ना होता
सर्दी, गर्मी, बरसात ना होते
हम तुम धरती पर ना होते
चारों पहर और आठों याम
तुमको है दिनकर कोटि प्रणाम
चली चली रे फागुन की बयार
ऋणी है इसकी सारी सृष्टि
देता है जीवन रूपी उपहार
तन फुर्तीले मन में उमंग
लहर लहर में जागी है तरंग
ऋषि मुनि साधु संतों ने
बरसों पहले किया प्रारंभ
भारत देश की शान है ये
सकल विश्व का मान है ये
भारतवर्ष है योग गुरु
भारत का अभियान है ये