प्रकृति है रुष्ट कहर इसलिए बरसाने लगा है
कोरोना महामारी पहले, फिर तूफान आने लगा है
टूटा है वह घरौंदा जो अभी सजने लगा था
ख्वाब टूटे हैं वे आज निगाहों में जो आने लगा था
कई साँस छूट गई कहीं जो जीने लगा था
कहीं हाथ छूट गया जो साथ के आने लगा था
आडंबर मानव के, नियति पर करता रहा चोट
मरती रही सृष्टि, खोज आदमी जो करने लगा था
सह लिया कुदरत ने, जितना सहना था उसको
बारी अब तेरी है धैर्य की ,सीख यहीं देने लगा है
ट्रेलर है ये तो सब बाकी अभी पिक्चर है मेरे दोस्त
न सुधरे तो आयेगा जलजला भयंकर कहने लगा है
-अन्नपूर्णा जवाहर देवांगन
महासमुंद, छत्तीसगढ़