विवेक रंजन श्रीवास्तव
भोपाल
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आज मुझ पर ये रात भारी है
सूरज पे चांद की बात भारी है
उजाले तक है बस शब का सफर
सुकूं पर बेचैनी की बारात भारी है
करवट बदलता लेटा हुआ हूं बस
मखमली है बिस्तर जज्बात भारी है
दिखता हूं संजीदा मगर जानता हूं
तूफान उठ रहे हैं, हालात भारी है
सिद्धांतों के बल, क्या लड़ोगे चुनाव
सारे सही गलत पर खैरात भारी है