नारी की सच्चाई- तबस्सुम सलमानी

सोचती है ये दुनिया सारी
ये है सिर्फ एक अबला नारी

ना झूकी द्रौपदी, ना झूकी दामिनी
ना ही झुकेगी आज की नारी,
भूल गए है ये इंसान
आज की नारी है सभी पे भारी

पहले बांटा पाँच पांडवों में
फिर जुए में हारी थी,
जब देखा द्रौपदी का क्रोध
तो हिल गई दुनिया सारी थी

लेकर उसकी कोख से जन्म
उसी के हाथों में पलते हो,
और हवस तुम्हारी ये कैसी है?
तुम बाद में उसी को निगलते हो

दूसरे की बहन को कहते हो
भाई ये तो बढ़िया माल हैं,
फिर ये क्यों तुम भूल जाते हो?
बहन दिखती तुम्हारी भी कमाल हैं

अपनी इज्ज़त की परवाह हमें
ना उस पर किसी की निगाह पड़े,
और दूसरे की इज्ज़त उतार
हम करते हैं परेशान उसे
जब तक वो हमारे सामने ना झुके

लड़कों को मिले सम्मान पूरा
लड़की को इज्ज़त मिलना भी भारी हैं
इंसान से बन गए हो जानवर
क्या यही पहचान तुम्हारी है?
और तुम कह देते हो बड़ी शान से
भाई यही तो दुनियादारी है

गलत हुआ लड़की के साथ
लूटी गई उसकी इज्ज़त हाथों-हाथ,
शर्म ना आई तुमको हैवानों
क्या ख़त्म हो गए है जज़्बात?

तुम कह देते हो एक माँ से
लड़की के कपड़ों को ठीक कर,
माँ बिलबिला उठी है ये सुनकर
मैं कैसे पहनाऊँ
तीन महीने की बच्ची को साड़ी?
रब से पूछा है ये चीख कर

पहल तुम्हारी लड़की ने की
ये कैसा बयान तुम्हारा हैं,
लड़की को रखो घरों में बंद
भला ये कैसा फरमान तुम्हारा हैं?

कभी फेंका, कभी जलाया
कभी चेहरा मेरा खराब किया,
थी कोन सी दुश्मनी मुझसे तुम्हारी?
जिसका तुमने ये हिसाब किया

कर देते हो किसी की ज़िन्दगी ख़राब
और तुम्हें मज़ाक भी उसी का बनाना हैं,
पर एक बात ज़रा तुम याद रखना
तुम्हे दुनिया को मुंह भी दिखाना है,
आख़िरत में हिसाब भी अपना करवाना हैं

ज़रा समझना इन बातों को
इन बातों में गहराई है,
यह झूठ नहीं हैं मेरे यारों
ये तो नारी की सच्चाई हैं

-तबस्सुम सलमानी
मलोया, चण्डीगढ़