वो खूब हंसी उड़ाते हैं,
मुझको छोटा जताते हैं,
लोग उतनी ही मजबूती से,
खामियां मेरी बताते हैं
पर कोई भी मौसम हो,
बागों में फूल महकते हैं,
लोग नजरों से गिराते हैं,
हम सितारों सा चमकते हैं
मेरे हरेक पथ पर,
लोग शूल ही बिछाते हैं,
पर कांटों से यारी मेरी,
ज़ख्म कहां पहुंचाते हैं
झूठ फरेब के हथियारों से,
ज़ख्म मुझे पहुंचाते हैं,
ज़ख्म से मेरी यारी देख,
दुश्मन भी तो इतराते हैं
राहों पर मैं गिर जाऊं,
ऐसे गड्ढे बनातें है,
मैं तो बच निकलता हूं,
पर खुद वहीं गिर जाते हैं
मेरी मायूसी को देख,
जश्न खूब मनाते है,
औरों की खुशियां को देख,
बेचैन सा हो जातें हैं
-जयलाल कलेत
रायगढ़, छत्तीसगढ़