जीवन की इस पगडंडी पर- डॉ उमेश कुमार राठी

सूखे तरुवर की शाखों पर
ताल बजाते पण
जीवन की इस पगडंडी पर
शेष बचा पतझड़

खाल पसीने से गलती है
धूल भरी आँधी चलती है
रहता है अँधहड़
जीवन की इस पगडंडी पर
शेष बचा पतझड़

आब नहीं तेजाब मिला है
कैसा प्यार जवाब मिला है
हर हिजाब के अंदर केवल
दिखती है गड़बड़
जीवन की इस पगडंडी पर
शेष बचा पतझड़

तेज हवा के झोंके आते
गंध सुगंध विभा ले आते
चुनरी उड़ती जब दामन से
करती है फड़फड़
जीवन की इस पगडंडी पर
शेष बचा पतझड़

आदत में बदलाव नहीं कुछ
चाहत से अलगाव नहीं कुछ
सिर पर पल्लू रखने से भी
होती है चिड़चिड़
जीवन की इस पगडंडी पर
शेष बचा पतझड़

रेत नदी में जब बचती है
जेठ दुपहरी में तपती है
दुख देता पग के छालों को
रेतीला कण कण
जीवन की इस पगडंडी पर
शेष बचा पतझड़

सेज सुमन पर प्यार मिला था
प्रीतम का उपहार मिला था
सुधियों की प्रेमिल खिड़की अब
करती है खड़खड़
जीवन की इस पगडंडी पर
शेष बचा पतझड़

होती जब बरसात अचानक
बन जाती तब रात कथानक
मीत सदा अंबर में बिजुरी
करती है तड़तड़
जीवन की इस पगडंडी पर
शेष बचा पतझड़

-डॉ उमेश कुमार राठी