तुम्हें क्या- रकमिश सुल्तानपुरी

मालूम नहीं दिल की क़दर, तुम्हें क्या
जलने दे ख्वाबों का शहर, तुम्हें क्या

तुम ज़रा सा मुस्कुराए और चले गए
अब ढूँढ़ती है तुमको नजऱ, तुम्हें क्या

कल से ठहरी है यहां रूह में उलझन
है दिल पर पुरजोर असर, तुम्हें क्या

तेरे चेहरे पे तस्वीर अभी थी उलझी
तेरी नफ़रत से जला है शज़र, तुन्हें क्या

रुसवा ख़ुद को मत कर भुला दे मुझको
ये ऑंसू हैं बहेंगे मग़र, तुम्हें क्या

आज तन्हा है दिल, ख़ैर कोई बात नहीं
ये वक्त भी जाएगा गुज़र, तुम्हें क्या

टूट कर राहों पे चला हूँ रकमिश
तन्हा कट जाएगा सफ़र, तुम्हें क्या

-रकमिश सुल्तानपुरी