स्वप्न- शीतल ठाकुर

पहाड़ों पर रात का नज़ारा
रात को पहाड़ों पे टिमटिमाती लाइट
जुगनू जैसी प्रतीत होती है
लाइटों का बना झुंड
ऐसा लगता है मानो
सारे जुगनू मिल कर कोई योजना बना रहे हैं
रात के सन्नाटे में
झरनो के सिसकने की आहट
लोरी सुना रहे हैं
हवा के झौंके से पत्तों का लहराना
अपनी ही धुन में झूम रहे हैं
चांद अपनी रौशनी से
पहाड़ों पर अपना प्रकाश फैलाए
सब देख कर मुस्कुरा रहा है
अब लगता है
भारत फ़िर से गा रहा है
बुलन्द आवाज़ में
और सबको पुकार रहा है
ये रात सुहानी रोज़ आएगी
मन मोह लेगी
छोड़ दो मोबाइल को कुछ देर तलक
आओ नीले आसमान तले
रात के नज़ारे को निहारने
ऊपर से गुज़रते चाँद की दूधिया रौशनी में
तारों को टिमटिमाते हुए नृत्य करते हुए
कितना मनमोहक लगता है
तब नींद कितनी प्यारी हो जाती है
ले जाती है अपने साथ
किसी अनन्त सीमाओं के ट्रैक पर
जो ख़ामोशी से बजता है
और ऐलिस इन वंडरलेंड की दुनिया में ले जाता है
और सुबह तक हमें अनन्त यात्राओं की सैर करा जाता है
फ़िर सूरज अपनी किरणों के संस्पर्श से
भारत की भाव भूमि को हमारी मन की भावभूमि को संश्लेषित करता है
ये सुन्दर ही हमारा स्वप्न है
और इसे बनाना हमारा ध्येय है

-शीतल ठाकुर
स्नातकोत्तर राजकीय कन्या महाविद्यालय,
सैक्टर-42, चण्डीगढ़