तुम नहीं जाते कभी: रूची शाही

तुम नहीं जाते कभी
रह जाते हो मुझमें
बचे-कुचे से हर बार

खुरच कर हटा भी दूँ तो
घाव से रह जाते हो
विरह की ज्वाला बुझा दूं तो
अलाव से रह जाते हो
नित नयी यादों की सवारी पे
लौट आते हो सवार

तुम नहीं जाते कभी
रह जाते हो मुझमें
बचे-कुचे से हर बार

मान क्या अपमान क्या
सब तुमपे न्योछावर किया
भुल गए खुद को भी
चाहा तुम्हें, तुमको जिया
बार -बार ये टूटा हृदय अब
गति से कर रहा इनकार

तुम नहीं जाते कभी
रह जाते हो मुझमें
बचे-कुचे से हर बार

रूची शाही