यही मर्म है मैंने जाना- डॉ रामाकान्त

देवदार बन सकें नहीं तो,
घाटी में झुरमुट बन जाओ
निर्झर तट पर सुन्दरता से,
अपनी तुम जग को हर्षाओ
यदि न महातरुवर बन पाए
बन झाड़ अथवा तृण प्यारे
किसी राजपथ के समीप उग
सुखी करो जन जन को प्यारे
चाँद नहीं तो तारे बनकर
भ्रमित पथिक को राह दिखाओ
अपनी पूरी शक्ति लगाकर
निष्ठा से कर्त्तव्य निभाना
ऊँचा-नीचा कर्म न कोई
यही मर्म है मैंने जाना

-डॉ रामाकान्त सहाय
सहायक प्राध्यापक, हिन्दी विभाग
श्रीमती अरुणा आसफ़ अली राजकीय महाविद्यालय,
कालका, हरियाणा