वो मोहब्बत को रोती रही रात भर
मेरा इश्क़ लम्हो से गुजर गया
उठनी थी मेरी डोली आख़िरी
सारा रास्ता वो फूलों से भर गया
मैं पनाह के जी के मरता रहा
जिंदगी ताश के पत्तों सी बिखर गयी
मै सो गया मिट्टी के आगोश में
अब वो मुझसे लिपट कर रो रही
कबसे लिपटी थी मेरे चादर पर
उसकी खुश्बू से मैं सहर गया
वो फिर झकझोरती है मुझको
मैं मिट्टी था अब फिर बिखर गया
मैं जीते जी खुदी के लिए मर गया
एक झलक के लिए उसके शहर तक गया
अंजान था कब, कब दर्द-ए-मनोज हो गया
बेज़ान हो उसका मैं खुदा हो गया
-मनोज कुमार