रूची शाही
बहुत आसान होता है
माफ कर दो कह देना
और खुद को मुक्त कर लेना
जैसे कुछ किया ही नहीं गया हो
पर एक छोटा सा लफ़्ज़
भरपाई कर पाता है क्या
उन तमाम दर्दों की, जो
एक साथ बेवजह हासिल हो जाते हैं
न जाने कितनी रातें टकटकी लगाए
रोते-रोते बीत गए होंगे
न जाने कितनी बार खयालों को
सीने से लगाए हृदय तड़पा होगा
कितना इंतजार किया होगा
उस शख्स का जिसका न लौटना पहले से तय था
ऐसा दर्द जिसे बांट भी न पाए किसी से
अनकही कितनी ही बातों का बोझ उठाया होगा
मासूम सा दिल कहां जानता है
कि बेमौत मरना लिखा है उसका
जी में आया होगा चिल्लाओ जोर से पर
सिसकियों ने इजाजत नहीं दी होगी
आंसुओं को छुपा के कितनी बार रोया होगा
सांसे घुट गई होंगी
हिचकियां जान लेके जाने को तैयार बैठी होंगी
भूख प्यास शायद सब मिट गये होंगे
गला सूखता होगा, आँखें तर होंगी
तन्हाई काट खाने को अमादा जैसे
और किसी का साथ भी न सुहाता हो
बस एक इंतजार हो कि लौट आएगा
और तमाम दर्द से निजात मिल जाए
एक बार उसके कलेजे से लगते ही
पर उसका कलेजा तो पत्थर का हो शायद
उसने सबकुछ महसूस किया हो
पर कौन उठाए बोझ
उसकी डूबती मरती ख्वाहिशों का
जानबूझ के तो दर्द तो नहीं दिया ना
अनजाने में हो गया सब
और फिर तमाम दर्द के लिए कहा गया हो
एक छोटा सा लफ़्ज़
I Am Sorry…