बस एक बार…माँ: तबस्सुम सलमानी

काश उस दिन तेरे हाथ को मैंने थाम लिया होता,
तेरे पल्लू से आख़िरी दफा अपने सर को ढाँक लिया होता
काश उस दिन तेरी जगह मेरी आंखें बन्द हो जाती,
तो इस तरह मेरी निगाहें कभी ना नम हो पाती

तेरी कमी मुझे हर पल सताती है,
मेरी ज़िन्दगी के हर किस्से में तू नज़र आती हैं
यूं तो तेरी यादों के सहारे गुज़ार दी मैं यह ज़िन्दगी
पर अफसोस,
तेरी यादें भी तो मैं तरीके से ना समेट पाई

सभी कहते है मैं बिल्कुल तेरी परछाई हूँ
तेरी जैसी होकर भी माँ, मैं कभी तेरे जैसी ना बन पाई
तेरे बाद इस दुनिया ने है संभाला मुझे,
लेकिन इस दुनिया में दोबारा तेरे जैसा ना कोई मिला मुझे

जब हर चीज़ से मैं हारने लग जाती हूँ
तेरी कमी हद से ज़्यादा महसूस करने लग जाती हूँ
बस एक बार तू मुझे गले लगा फिर से
मेरा बच्चा कहकर पुकार दे,
मेरे माथे को चूम ले, मेरे बालो को अपने हाथों से संवार दे
मेरी दिल में अपनी एक प्यारी से तस्वीर उतार दे

तू वापस आ जा बस एक दफा,
मैं अच्छी बच्ची बन जाऊंगी,
तू खुश बहुत है मुझे देख कर,
मैं तेरे मुंह से सुनना चाहूंगी
बस एक बार…माँ
तू आ तो सही,
मैं तुझसे दोबारा मिलना चाहूंगी

तबस्सुम सलमानी
मलोया, चण्डीगढ़