कुछ तो रिश्ता होता है: प्रीति नेगी

मैं क्या हूँ?
मैं कौन हूँ?
मैं कब पराई हुई?
और कब अपनी?
ऐसे हज़ारों सवालों का बोझ,
कब तक लूँ मैं ख़ुद पर

जन्म लेने से पहले ना जाने,
कितनों ने कोसा होगा मेरे भोले माँ-बाप को,
ना जाने कितनों की बातें सुन कर,
अनसुना किया सिर्फ़ मेरे लिए,
कुछ तो रिश्ता होता है,
जो इतना अटूट और प्यारा सा होता है

जन्म लिया तो सबसे अनजान,
नादान, बेखौफ़ सी थी,
प्यार की छाँव के तले,
प्यारा सा था मेरा संसार,
किसी के आँखो का तारा,
तो किसी की गुड़िया बेटी,
लेकिन, माँ-बाप का अरमान थी मैं,
बेटी बड़ी होती गई,
बचपना ख़त्म होता गया,
बेखौफ़ का पर्दा ढोता गया,
खौफ़ मन में होता गया

उस बचपन की दुनिया से कितनी अलग थी ये दुनिया
जहाँ मुझे पड़ने-लिखने से रोका गया,
आने-जाने के लिए टोका गया,
रास्ता मेरा रोका गया,
ख़्वाब मेरे टूट गए, हो सब चकनाचूर गए,
इंसान से कब कठपुतली बन गयी,
ये सवाल मन में चुभता गया,
घर पर रहती माँ मुझे कहती,
लड़की हो तुम घर पर रहो,
काम तुम घर का मेरे संग करो,
बाबा कहते क्या रखा है पढ़ने-लिखने में
पड़ने-लिखने के बाद भी ससुराल ही जाओगी

जब ससुराल की बारी आयी,
एक दम से हो गयी मैं पराई,
ससुराल गयी वही अनजाने लोग
अलग सी दुनिया और एक तन्हाई
बेचनी सी मन को खाती जाती,
क्या में वही हूँ सबकी गुड़िया!
क्या में अभी भी किसी का अरमान हूँ!
अगर हूँ तो फिर पराई क्यूँ,
वो अपना कह के पराया क्यू कर दिया?
ससुराल में भी वही बातें,
तू किसी की पराई अमानत है
क्या सिर्फ़ इस लिए मेरा जन्म हुआ
कि में पराई कहला सकूँ?

कभी चरित्रहिन, कभी अपमानित
कभी बोझ, कभी काला साया
कह कर मुझे कोसा गया,
मेरा ज़िंदगी से भरोसा गया,
कदर ना मेरी किसी ने की,
ख़ुद को में कोसती गई,
मन ही मन रोती गई,
आत्मा भीतर की ख़त्म हो गई,
ख़ुशियाँ सारी ख़त्म हो गई,
दिल भी मेरा टूट गया,
कोई अपना ना रहा,
अपना-अपना कह कर
अपनो ने ही लूट लिया
दे कर सब कुछ मुझको
मुझसे ही सब छिन लिया
छोड़ कर सबने मुझको
अपना रस्ता चुन लिया

दिल को सम्भाला, ख़ुद को सम्भाला
संभलते-संभलते शाम गयी
जब पता चला एक नन्ही सी जान
का रिश्ता मुझसे जुड़ गया
कब शाम से रात हुई और प्रभात हुआ
ज़िंदगी उसके नाम की
फिर से नई शुरुआत की
प्यारी सी दुनिया में
एक नन्ही जान का नाम हुआ

प्रीति नेगी