क्यूँकि ये रिश्ता ही कुछ ऐसा है: प्रीति नेगी

कौन कहता है ख़ुदा नहीं होता
मैंने देखा है अपने ख़ुदा को
मैंने देखा है उनकी मुस्कान को
उनकी आँखों में नूर को
जिन बंद आँखो से बुनते हैं वो ख़्वाब कई
होते सच देखा है उसी अरमान को
ईश्वर का ही तो प्रतिबिम्ब है
इस धरती पर माँ-बाप का अवतार तो
न हो यक़ीं तो पूछलो इस जहान को
स्वर्ग है जिनके चरणों में
ममता है जिसके आँचल में
प्रेम है जिनकी बाहों में
इनके जैसा होगा ही नही इस संसार में
माँ-बाप न हो तो कुछ नहीं
कोई सुख-सुख नहीं
कोई दुःख-दुःख नहीं
न कोई अपना यारों, न कोई पराया
दिन हो या रात हो सारा जीवन ही इनके साथ हो

क्यूँकि ये रिश्ता ही कुछ ऐसा है
जहाँ न कोई घृणा न लालच
बस प्रेम का बंधन और अपनापन
अपनी ख़ुशियों को त्याग कर
अपनी पसंद नापसंद को छोड़
कर दी क़ुर्बानी सिर्फ़ तुम्हारे लिए
तुम क्या जानो उनके अनन्य प्रेम को
जानते तो न पूछा होता भगवान को

प्रीति नेगी