मैं कविता हूँ- प्रीति कुमारी

मैं कविता हूँ,
नवजात शिशु की भांति
मैं कविता हूँ
जिसे रचने वाले ने,
कई वक़्त से मुझे गढ़ा है,
शब्दों की माला से मुझे गुथा है

जिस प्रकार माँ
अपने बच्चे को रोज़ सींचती है
उसी तरह रचनाकार मुझे,
रोजाना सींचता है
क्योंकि मैं कविता हूँ,
नवजात शिशु की भांति,
मैं कविता हूँ

रचनाकार ने मुझे उसी तरह,
पाला पोसा है
जिस प्रकार माँ अपने,
नवजात शिशु को पालती पोसती है
क्योंकि मैं कविता हूँ,
नवजात शिशु की भांति,
मैं कविता हूँ

जिस प्रकार माँ शिशु को,
दुलारती, निहारती, संवारती है
रचनाकार मुझे उसी तरह,
दुलारता, निहारता व संवरता है
इसीलिए मैं कविता हूँ
नवजात शिशु की भांति,
मैं एक कविता हूँ

-प्रीति कुमारी