रुलाते हैं तेरे ख़त- सुरेंद्र सैनी

जब भी कभी याद आते हैं तेरे ख़त
मासूम दिल को रुलाते हैं तेरे ख़त

जहाँ-तहाँ किताबों में बंद तो कभी,
सिरहाने नज़र आते हैं तेरे ख़त

कसमों-रस्मों से ऊपर उठ गया हूँ,
तेरे झूठे थे वादे, बताते हैं तेरे ख़त

क्या हुआ जो तुम ऐेसे दूर हो गए,
रह-रह के बेचैनी बढ़ाते हैं तेरे ख़त

जब भी पढ़ने बैठ जाता हूँ इन्हें,
मेरे अश्कों से भीग जाते हैं तेरे ख़त

कितनी प्यारी थी तेरी वो नादानियाँ,
कभी कितना खिलखिलाते हैं तेरे ख़त

जब भी कभी उदासी छा जाती है,
हल्के-हल्के से मुस्कुराते हैं तेरे ख़त

मुझे अपने से अलग नहीं होने देते,
तन्हाई में मुझको हँसाते हैं तेरे ख़त

मेरी ख्वाहिशों में तू भी शामिल रहा,
मेरे सीने में अगन लगाते हैं तेरे ख़त

लिखे हरफों में कितना खो जाता हूँ,
लफ़्ज़ों से कितना सताते हैं तेरे ख़त

ये भी तो गुफ़्तगू का एक बहाना है,
कितनी सारी बातें बनाते हैं तेरे ख़त

वो पुराना वक़्त बड़ा अच्छा गुजरा,
मेरे अतीत में कहीं समाते हैं तेरे ख़त

ज़िन्दगी में कितना कुछ घटित हुआ,
हर एक शगूफा सुनाते हैं तेरे ख़त

रात लम्बी थी,जाने कितना सोता रहा,
‘उड़ता’ गहरी नींद से जगाते हैं तेरे ख़त.

-सुरेंद्र सैनी बवानीवाल ‘उड़ता’
झज्जर, हरियाणा
संपर्क +91-9466865227.