मन पतंग- सुमन ढींगरा दुग्गल

उड़ जाने दो मन पतंग को दूर कहीं नील गगन की ओर

भावों की डोर मे बंधकर करने दो स्वच्छंद अठखेलियाँ
इस जीवन की सुलझी हैं न कभी सुलझेंगी पहेलियाँ
खींच मत धरा की ओर, बाँध रस्मों, कसमों की डोर
उड़ जाने दो मन पतंग को दूर कहीं नील गगन की ओर

भूले मधुर सतरंगी सपनों के कागज से सजकर
कामनाओं की सुकोमल तीलियों में बंधकर
आनन्दमग्न भरने दो उड़ान खुली हवा मे चहुँओर
खींच मत धरा की ओर बाँध कर रिश्तों की डोर
उड़ जाने दो मन पतंग को दूर कहीं नील गगन की ओर

नाप लेने दो इस को ये नीला आकाश अपरिचित
चख लेने दो प्यासे मन बावरे को आजादी का अमृत
उम्र के बंधन में बाँध कर काट मत कोमल मन की डोर
उड़ जाने दो मन पतंग को दूर कहीं नील गगन की ओर

-सुमन ढींगरा दुग्गल