इश्क़ वालों को मिला है ये फ़ना होने का हक़
यूँ सभी को तो नहीं है बेवफ़ा होने का हक़
प्यार कर फिर बेवफ़ा होने की तू भी सोचना
पास तो आ फ़िर अदा करना जुदा होने का हक़
आईने की चाह रख तू बन रहा पत्थर मग़र
पत्थरों को कब मिला है आईना होने का हक़
डूबकर दरिया में निकला हो कभी जो इश्क़ के
है उसे बेशक़ सितमगर रहनुमा होने का हक़
इक छुवन से ही ज़ेहन में ख़लबली मच जाये तो
उस सुख़नवर को मिलेगा इक दवा होने का हक़
बेक़सी की आग़ में तप आबे-जमज़म के लिए
सुर्ख़ होठों को ही होता मयकदा होने का हक़
है बड़ी ही ख़ुशनसीबी, बेवफ़ा होना मग़र
बेवफ़ाओं को मिला है बस जुदा होने का हक़
रास्तों को छोड़ मंज़िल के लिए चलते सभी
सब की किस्मत में नहीं पर रास्ता होने का हक़
जाने दे ‘रकमिश’ न समझेगा कभी तू हाले दिल
कौन करता है अदा अब हमवफ़ा होने का हक़
-रकमिश सुल्तानपुरी