डर लगता है उम्र बढ़ने से- पूजा पनेसर

थम जाए यह समय तो
अच्छा होगा,
वक्त का तकाज़ा
देखा नहीं जाता,

एक पल में कैसे जी लूँ
दुनिया सारी,
जब दुनिया का
तजुर्बा नहीं आया,

माँ के पेट में बढ़ती थी उम्र,
जग में आने से इसे
खो देने का भय ने सताया,

देख नहीं सकते लोचन
न रहता हुआ ताज,
जो था किसी दौर इस
राजे का मुहताज,
छीन लेती है उम्र इसे
आखरी पहर के बाद

चाहता हूँ बढ़ना अपने
अस्तित्व के लिए,
जहां रोके न कोई
मेरी उम्र के लिए,

इज़ाज़त हो तो करूँ
इशारा उस रब को,
मेरी सूखी जड़ों को
फिर से हरा भरा कर दे,

बचपन का दौर याद
करना नहीं चाहती,
क्यों की जनाब मैं
बढ़ना नहीं चाहती,

हां डरती नहीं इंतकाल से
बस सहारा लेना मँजूर नहीं,
देखा है ठोकर खाती माँ को,
इस लिए बढ़ना मंजूर नहीं

पल को पल भर जितना जीना नहीं,
देख के सारी दुनिया फिर रोना नहीं,
चाहता हूँ सीखना हर दौर में
पर डर लगता है उम्र बढ़ने से

-पूजा पनेसर
लुधियाना, पंजाब