मृत संवेदनाएं- अरुण कुमार

मर चुकी हैं लग रहा संवेदनाएं अब हमारी मर चुकी हैं
अब किसी के जख्म पर मरहम लगाते क्यों नही?
अब किसी के दुःख में आंसू बहाते क्यों नहीं
कल तलक था प्यार जिनसे,
आज उनसे मोल ली है, नफ़रतें क्यों ढेर सारी
मर चुकी हैं लग रहा संवेदनाएं अब हमारी,
मर चुकी हैं

सामने कोई पीट रहा है,लूटने वाला लूट रहा है
भीड़ में भी वह अकेली, क्यों बनी बेबस बेचारी
मर चुकी हैं लग रहा संवेदनाएं अब हमारी,
मर चुकी हैं

जो अदब था, जो मुहब्बत, आज उसकी है जरुरत
कल तलक ही जिस पड़ोसी से हमें दरकार थी
क्यों छिड़ी है आज उससे बेवजह तकरार भारी
मर चुकी हैं लग रहा संवेदनाएं अब हमारी,
मर चुकी हैं

दूसरों पर दोष मढ़ना अपनी फितरत हो गयी है
दूसरों की क़द्र करने की थी आदत खो गयी है
स्वार्थवशता, मूल्यहीनता का क्यों बना पर्याय है
जो भी हो जैसे भी हो, वह सब स्वीकार्य है
आज इंसां है बना, क्यूँ दुसरे इंसां का दुश्मन
लूट ली है इस क़दर भौतिकता ने भाव सारी
मर चुकी हैं लग रहा संवेदनाएं अब हमारी,
मर चुकी हैं

-अरुण कुमार  नोनहर
विक्रमगंज, रोहतास
संपर्क- 7352168759