मृत्यु- आलोक कौशिक

जीवन से मोह ही
जीवन को जटिल बनाता है
और मृत्यु का भय ही
मृत्यु को भयावह
मृत्यु तो विश्राम देती है
अपनी गोद में आराम देती है
मृत्यु ही सच्ची प्रेयसी है
लेकिन यह तुम नहीं समझोगे
क्योंकि तुम भ्रमित हो
तुम्हें पता ही नहीं है
कि सत्य क्या है
जब मिट जायेगा भ्रम
जान लोगे पूर्ण सत्य
तब तुम्हें भी हो जायेगा प्रेम
मृत्यु से
और फिर प्रबल हो जायेगी
परम प्रिय से मिलन की उत्कंठा
व्याकुल हो जायेगी आत्मा
मुक्त होने के लिए
जैसे छटपटाता है
कोई पंछी
पिंजरे में
अपनी स्वतंत्रता की चाह में

-आलोक कौशिक
साहित्यकार एवं पत्रकार
मनीषा मैन्शन, बेगूसराय,
बिहार, 851101,
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