सरहद के उस पार- अरुण कुमार

रात को सोते समय मेरे मन में ख्याल आया,
नींद की शुरुआत में ही एक ख्वाब आया
कोई रिश्ता जरूर है जो टूट जाता बार-बार
अधखुली पलकों से देखा सरहद के उस पार

कभी बम के धमाके आग बरसाते हैं गोलों से,
कभी मासूम की चीखों से चिंताओं के शोलों से
देख कर करतूतें ऐसी दिल में पड़ जाती दरार,
अधखुली पलकों से देखा सरहद के उस पार

वाकई सुबह में सरहद से एक किरण आई,
खुतूत के साथ उसने लाई सरहद की सच्चाई
लिखा था रात को सरहद पर मारे गए हैं अपने,
बम के गोलों और धमाकों से टूटे हैं सपने
केवल सुनने को मिल रही है मासूमों की चीख-पुकार,
अधखुली पलकों से देखा सरहद के उस पार

जान के करतूत ऐसी मेरे जज्बात को यूँ ठेस आई,
दिल हुआ मेरा मर्मांतक तक, मन में विद्रोह समाई
ना जाने किसने किया क्यों किया ऐसा अत्याचार,
भयानक रात को जब सोया हुआ था सारा संसार
तब मुझे सूझा की मिल्लत से ही हो सकता है इसका कोई उपचार,
अधखुली पलकों से देखा सरहद के उस पार

-अरुण कुमार नोनहर
बिक्रमगंज, रोहतास
संपर्क- 735168759