रहस्य- अनामिका वैश्य

गगन से लेकर प्रकृति-पृथ्वी आभारी
बेहद रहस्यमयी है ये दुनिया सारी

जाने कितने रहस्य छुपे रहते हैं
नभ की नाभि में ही दबे रहते हैं
अनजान है अबतक विद्वजन भी
पृथ्वी के कण कण मे रमे रहते है
हो प्रकृति प्रतिपल नवसृजन दिव्यताधारी
बेहद रहस्यमयी है ये दुनिया सारी

ये मानव भी कहाँ कम है भेद छुपाने मे
अपने हृदय में गहरे कई रहस्य दबाने मे
अपनत्व नेहवश साज़िशें देख की अनदेखी
अपनों की गलती भूले सब रब्त निभाने में
दिल दिमाग की जंग में जीती न हारी
बेहद रहस्यमयी है ये दुनिया सारी

अपनों का ईर्ष्या द्वेष साज़िशें
नफ़रतों से भरा हुआ है दिल
गूढ़ रहस्यों से सजे हुए हैं चार
नभ प्रकृति पृथ्वी और ये दिल
दुखी हुआ मन दिल टूटा ख़ुद को समझा हारी
बेहद रहस्यमयी है ये दुनिया सारी

-अनामिका वैश्य आईना
लखनऊ